Samajik Vedna
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कभी पिता सम्मुख मुश्किल था , बच्चों का बोलना।
बदलते दौर में ,यह रिश्ता हुआ दोस्ताना।।
मां-बाप ने पाला , बच्चों को बड़े प्यार से।
बच्चों ने आदर किया , मां-बाप का बड़े घ्यान से।।
सब रिश्तों में है अव्दतीय मां-बाप का रिश्ता।
संतति को चाहता निज से ऊॅचा कद यह रिश्ता।।
पढ़-लिखकर जब बच्चे हुए सयानें ।
भूल कर घर-परिवार, हो गये बेगानें।।
भूल गये माँ की ममता ,जब आखें हुई दो से चार।
भूल गये पिता की दोस्ती , जब झूल गये प्रियतमा में यार।।
जरा सोच लो बस एक बार, कभी तुम भी होगे जरा।
बहुत पछताओगे , मां-बाप को रूला कर।
कुछ न हाथ आयेगा,रह जाओगे दिल मसोस कर।।
जाग जाओ ,याद कर लो तात की दोस्ती।
धन्य हो जाएगा निज तन,मां-बाप की मुस्कान देखकर।
कट जायेंगी हजार बाधायें , मां-बाप के आशीष वचन पाकर।।
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