Samajik Vedna
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नारी के रूप अनेक
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मैं नहीं सुकुमारी अबला बाला।
मैं हूँ दधकती एक अग्निशिखा।।
मेरे ताप से जलता है संसार सारा।
मेरी ममता से पलता है संसार सारा।।
मेरे हुनर ही संवरता है धाम सारा।
मुझे न देख विस्मय़ भरी निगाह।
मेरे त्रिया चरित्र की नहीं है थाह।।
माना हया अमूल्य निधि नारा की।
लज्जा में कायम रहती सुंदरता नारी की।।
लाज विहीन नारी होती उजड़ा उपवन।
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