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दुश्कृत्य एक भयावह समस्या

Samajik Vedna
Samajik Vedna
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दुश्कृत्य एक भयावह समस्या
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कल तक मानी जाती थी, देवी का रूप कन्या ।
अचरज हो रहा आज, तरूणाई देखती नजरों पर ।।
स्वस्थ्य समाज के लिए दुश्कृत्य एक भयावह समस्या है। दुश्कर्म पीड़ित महिला दुश्कृत्य की आग में जीवन भर जलती रहती है। वह समाज में नजरें उठा कर नहीं चल पाती। उसकी कोमल भावनाओं पर इस तरह प्रभाव पड़ता है कि उसे हीन भावना के साथ जीना होता है। शोषित नारी की कोई गलती न होने पर भी समाज के लोग उसे पहले जैसा सम्मान नहीं देते है। समाज, पीड़ित को लाचार, बेचारी आदि शब्दों का प्रयोग करके ऐसे कृत्यों को गलत तो कहता है। लेकिन दोषी को समाज, समाजिक दण्ड नहीं दे पाता। शोषित महिला अपने भाग्य को कोसती है। कभी -कभी कुण्ठा भरी जिन्दगी से तंग आकर अपना जीवन समाप्त कर लेने के लिए मजबूर हो जाती है। नारी भावना का सम्मान होना चाहिए —-
मेरी ममता से पलता है,संसार सारा ।
मेरे हुनर से ही,संवरता है धाम सारा ।।
दुश्कर्म की घटना निःसंदेह अति कण्टकारी है। एक घटना अनेक लोगों के जीवन को बुरी तरह प्रभावित करती है। लेकिन समाज में एक और तस्वीर देखने को मिलती है। पुरूष वर्ग बर्बर, निर्दयी,शोहदा, दरिन्दा हो गया है। महिला किसी भी आयु की हो यहाँ तक कि वह 30-40आयु वर्ग की है। फिर भी विभिन्न माध्यमों से सुनने और देखने को मिलता है कि एक युवती को अमुख पुरूष ने बहला-फुसला कर उसका शोषण किया है। जवानी के मद में मदहोश युवती भी असहाय और अबला नजर आती है।
बन ठन कर निकली,तिरछी चितवन लेकर ।
जाती बस एक अदा में,सब कुछ लेकर ।।
विभिन्न माध्यमों से ज्ञात होता है कि महिला विशेष कहती है-चार पांच वर्ष सेअमुख व्यक्ति मेरा शारीरिक शोषण करता आया है। मुझे न्याय मिलना चाहिए। कहती है—
न्याय न मिला यदि मुझको,आत्म दाह कर जाऊँ ।
पुरूष जाति के माथे पर,एक कलंक धर जाऊँ ।।
उक्त दोनों परिस्थितियों में(पुरूष दोषी है या महिला दोषी है)भारतीय सभ्यता रोती है। इस समस्या का
समाधान जरूरी है। यदि सत्य एवं न्याय की तिलांजली देकर, नैसर्गिक न्याय को भुला कर समस्या हल करने का प्रयास किया जाता है, तो समस्या का हल नहीं निकलता बल्कि समस्या विकराल रूप धारण करती है। अतः निस्पक्षता के आधार पर समस्या का समाधान ढूंढा जाय, तो बेहतर समाधान निकाला जा सकता है। यह सत्य नहीं है कि मात्र पुरूष वर्ग ही दुश्कृतय का दोषी है, महिला वर्ग निर्दोष है। यह हो सकता है कि दोनों वर्गों में पुरूष वर्ग का दोषी होने का अनुपात कुछ अधिक हो। लेकिन महिला वर्ग को निर्दोषी नहीं माना जा सकता। सत्यता व निस्पक्षता को आधार बनाकर यदि घटना विशेष के दोषी के विरूध कार्यवाही की जा जाय एवं समाजिक दण्ड दिया जाय, नैतिकता को प्रोत्साहन मिले, नैतिक शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया जाय, आयु को ध्यान में रख कर युवक-युवतियों का विवाह किया जाय, विवाह में अति विलम्ब बिलकुल न किया जाय ,विवाह समय की अनिश्चितता समाप्त की जाय
आत्मा को सता कर, ठंडी नहीं होती है आत्मा ।
मनुजता निगलने पर, खुश नहीं होता है परमात्मा ।।
असहाय धरा निहार रही गगन को ।
मानव ताक रहा धन-दौलत को ।।

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