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गरीब का दर्द
एक गरीब व्यक्ति बड़ा लाचार व विवस होता है। वह अपन जीवन लाचारी व विवसता में
जीने के लिए मजबूर रहता है। अपने अभावग्रस्त जीवन में चलते-फिरते लोगों की झिड़क
सुनता है। झिड़क सुनकर कभी तिलमिला जाता है। कभी अपनी लाचारी को अपने दामन
में छिपा कर मुस्करा कर रह जाता है। कभी अपनी गरीबी को कोसता है। कभी-कभी उग्र
भाव व्यक्त करता है। लेकिन उस समय भी वह भयग्रसत होता है। कभी वह इन परिस्थि-
तियों को प्रकृति की नियति मान कर टाल जाता है। अपनी बहन-बेटियों की इज्जत के विरूध
कृत्यों को अनदेखा कर जाता है। कभी-कभी इज्जत लुट जाने पर अपने दिल को कसम-कस
की स्थिति में पाकर खिन्नता के सागर में डूब जाता है
दिनकर की सुर्ख आँखों के सामने दिनभर।
अपनी बेरहम गरीबी से लाचार होकर।।
बिना परवाह परिश्रम करता है जाता।
कभी अपनी इज्जत नीलाम कर है जाता।।
तन के पट तार-तार की नहीं की परवाह।
हाय गरीबी, क्या-क्या है करवायेगी।।
गरीबी का हल—
अमीर अपनी विलासिता का एक दिन दे जाय।
गरीब के तीस दिन की रोटी काजुगाड़ हो जाय।।
गरीब को परिश्रम का पूरा दाम मिल जाय।
तो उसके जीवन का दरिद्र मिट जाय।।
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