Samajik Vedna
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भ्रमित करता धर्मतन्त्र
प्रपंची प्रवचनोंसे, करते शोषण जन जन का।
वैभव में रह कर, देते उपदेश सादगी का।।
धर्मतन्त्र के दिग्गज,बजाते अपनी ढफली अपना राग।
देश की युवा शक्ति, ठोकर खाती रही भटक।
भोग विलासी शोषक,जनता में रहा खटक।।
धर्मतन्त्र के दिग्गज,बजाते अपनी ढफली अपना राग।
धर्मतन्त्र-शोषक सो रहा यौवन की गलियों में।
बचा समय कुछ, सो गये अकूत सम्पदा के ढेरों में।।
धर्मतन्त्र के दिग्गज, बजाते अपनी ढफली अपना राग।
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