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बलात्कार के मामले में नाबालिग कौन
नाबालिग व्दारा कारित अपराध जघन्यतम अपराध की श्रेणी का नहीं माना जाना चाहिए। मेरा मानना है कि जघन्यत अपराध करने वाला स्वस्थ्य मस्तिण्क, अच्छे-बुरे का ज्ञान व समझ का होना आवश्यक है। साथ ही उसका आशय भी स्पण्ट होना चाहिए। अपराध कारित करने में आशय का बहुत अधिक महत्व होता है।जैसे-भीड़ में चलने पर तेज धक्का लगने पर प्रतिक्रिया में यही सुनने को मिेलेगा -भइया सभल कर चलो। लेकिन यही अन्य परिस्थतियों में मामूली धक्का देना अपराध की श्रेणी में आ जाता है। इसी प्रकार सार्वजनिक वाहन में यात्रा करते समय बदन स्पर्श एक साधारण बात हो सकती है। लेकिन अन्य परिस्थतियों में यह अपराध हो सकता है। अब प्रश्न उठता है कि नाबालिग कौन , क्या बलात्कार के मामले में 15 या16 वर्ष आयु वाले को बालिग माना जाय,या मानना उचित होगा,बलात्कार की घटनायें जो हो रही हैं, क्या उनमें शामिल अपराधियों की आयु प्रायः 18 वर्ष से कम है। दुश्कृत्य एवं हत्या करने वालों में 12 से14 वर्ष का बच्चा या बच्ची के भी उदाहरण मिल जायेंगे। तो क्या बलात्कार के मामले में इनको भी बालिग मानते हुए उसे कड़ी से कड़ी सजा दिया जाना नैसर्गिक न्याय के अनुकूल होगा,
यदि बच्चे जो 12से14 वर्ष के हैं ,बचपन में या 15से 18 वर्ष की आयु के किशोरावस्था में कठोर सजा दी जाती है । तो यह न्याय संगत नहीं होगा। कारण स्पण्ट है कि किशोरावस्था तक यद बच्चा दुश्कृत्य का अपराध करता है तो यह उसका हीं उसके संस्कारों का दोष होता है। संस्कार बच्चे को मुख्यतः घर-परिवार से मिलते है। घर-परिवार में अच्छे संस्कारों की बात नहीं की गयी, माता-पिता व्दारा बच्चों पर पर्याप्त समय एवं ध्यान नहीं दिया गया तो इस पर बच्चों का दोष नगणय एवं मॉ-बाप का दोष प्रधान माना जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
विशेष बात यह है कि 12से 18 वर्ष का बच्चा यदि दुश्कृत्य का अपराध करता है तो इसके लिए हम-उम्र लड़की भी दोषी है । मेरा मानना है कि अज्ञानता से घिरा उन्माद में यदि नाबालिग लड़का बलात्कार का दोषी है और उसे जघन्यतम अपराध न मानते हुए सजा दी जाती है तो यह सजा उसके लिए अधिकतम ही हगी। क्यों कि न्यूनतम सजा पाकर भी उसे अपना जीवन संवारना बहुत कठिन होगा। 15से18 वर्ष की उम्र उसके अपने भविण्य के लिए सपने सजोनें की उम्र होती है। अज्ञानतावस उन्माद में की गयी गलती पर न्यूनतम सजा उसके सभी सपने विखरने के लिए काफी है। उसके कैरियर बनाने के बहुत से रास्ते बंद हो जाते हैं। दुश्कर्म से दूर रहने के लिए न्यूनतम सजा न्यूनतम नहीं अधिकतम के बराबर भय उत्पन्न कती है।
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