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क्यों नहीं हैं सुरक्षित महिलाएं

Samajik Vedna
Samajik Vedna
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क्यों नहीं हैं सुरक्षित महिलाएं
माता-पिता हर मुसीबत का सामना करके अपनी बेटी को पढ़ा रहा है। आज नारी शक्षित है। बड़े दुर्भाग्य की बात है कि जब नारी का अशिक्षित का अनुपात बहु अधिक था। उस समय नारी दुश्कृत्य का शिकार नहीं होती थी या ऐसी घटनाओं की संख्या नगण्य थी। लेकिन आज जब नारी शिक्षित हो गयी है तो उसको दुश्कृत्य का शिकार होना पड़ रहा है। जब नारी भोली-भाली थी तो दुश्कृत्य की घटनायें अपेक्षाकृत कम होती थी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज दुश्कृ्त्य की घटनाओं में बृध्दि हुई है। इस अमानवीय कृत्य की शिकार नारी जीवन भर हीन भावना के साथ जीती है। उसकी कोमल भावनाओं पर कुठाराघात होता है। वह इसके लिए दोषी पुरूष को कोसती है। साथ ही अपने भाग्य को भी कोसती है। कभी-कभी कुण्ठा भरी जिन्दगी से तंग आकर अपना जीवन समाप्त कर लेने के लिए मजबूर ह जाती है। दुश्कृत्य की शिकार नारी सोचती है–
मेरी ममता से पलता है संसार सारा।
मेरे हुनर से ही संवरता है संसार सारा।
फिर मेरे साथ यह अमानवीय कृत्य क्यों हो रहा है। यह एक चिन्ता का विषय है। सोचने की बात है कि दुश्कृत्य की घटनाओं में बृध्दि क्यों हो रही हैं, क्या नारी अपने आप को सुरक्षित महसूस कर पायेगी,क्या दुश्कृत्य की घटनाओं को रोका जा सकेगा, क्या नारी रात हो या दिन अकेली सुरक्षित घूम सकेगी,इसका अन्त क्या होगा,
सर्वप्रथम ऐसी घटनाओं में बृध्दि के कारणों पर विचार करना होगा। समाज के बदले हुए परिवेश में नर और नारी का स्वच्छन्द घूमना,आने-जाने उठने-बैठने के ढंग,उसका परिधान,जीवन जीने का ढंग,दोस्ती के नाम पर सार्वजनिक रूप से अश्लील कृत्य करना,सामान्य तौर पर या कैरियर के नाम पर युवकों और युवतियों की
शादी विलम्ब से करना आदि में दुश्कृत्य की घटनाओं के कारण छिपे हैं। बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है-
अचरज हो रहा, तरूणाई देखती नजरों पर।
भूल कर अपनी उम्र,निगाहें जाती नाजुक अंगों पर।।
लेकिन इसके लिए केवल पुरूष दोषी नहीं है। नारी भी इसके लिए दोषी है। नारी का परिधान उत्तेजक होता है। कभी-कभी कुछ नारियां अपने नाजुक अंगों को अधखुला करके चलती है। कपड़ों की नाप कैसी होती है यह बताने की आवश्यकता नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि अब-की-तब अंगों पर पड़ा परदा पूर्णतः हटने वाला है। नारी अपने पुरूष मित्रों के साथ खुलेतौर पर आना-जाना एवं बात-चीत कर रही है। यह अच्छी बात हो सकती है। लेकिन रति के उन्माद में समाजिक हदें पार किया जाना उचित नहीं कहा जा सकता।
जब एक नारी किसी पुरूष के काफी करीब आकर दूर होने की बात करती है तो निराशा व हताशा में दुश्कृत्य की घटनायें होती है। वासना सम्बन्धी बातें करके आनन्द लेने से साथ वाले की हिम्मत बढ़ जाती है और सम्भोग के लिए राजी करने का प्रयास करता है।अपने प्रयास में असफल होने पर वह बलपूर्वक काम करने की बात सोचने लगता है। इस उन्माद में वह अपने मित्रों का सहारा भी लेता है। जिसका परिणाम होता है ,सामूहिक दुश्कर्म। इससे स्पण्ट होता है कि झूठे आधुनिकता के नाम पर समाजिक मर्यादाओं को भूल कर नर-नारी के आपसी खुलापन घटनाओं का कारण बनता है।
असुरक्षित समय एवं असुरक्षित स्थान पर नारी हो या नर,सुरक्षा संदिग्ध हो जाती है। मैं समझता हूँ कि समस्त विश्व में अनादि काल से इसे ध्यान में रख कर यात्रायें की गयी। यदि नारी शालीन परिधान में शालीनता से आने-जाने,शोबर चाल-ढ़ाल से चलने, नेत्रों की चंचलता रोक कर चलनेसे,समाजिक मर्यादा में(नर-नारी दोनों)रह कर आने-जाने से,अध्ययनरत छात्र-छात्रायें कालेज परिसर तक दोस्ती होने से (होटल,सिनेमाहाल की दोस्ती छोड़कर) दुश्कर्म की घटनाओं में कमी करने में सहायक होगा।
मोबाइल,इण्टरनेट,फेशबुक आदि के प्रयोग पर पर्याप्त प्रतिबन्ध लड़का-लड़की के माता-पिता व्दारा लगाया जाय। माता-पिता की बच्चों के प्रति उदसीनता भी ऐसी घटनाओं के कारण बनते हैं।  विलम्ब से शादी या शादी के समय की अनिश्चितता भी एक कारण है-
कैरियर के फेर में बीत रहे जवानी दिन।
आज समाज में अति विलम्ब से शादी करने का चलन सा आ गया है। शादी के समय की अनिश्चितता भी दुश्कर्मों का कारण बनती है।
भारत देश की एक अपनी विशेष संस्कृति रही है। यदि युवकों और युवतियों को झूठी आधुनिता के लिए स्वच्छन्द रखा गया तो समाज का वह विकृत रूप तैयार होगा, जिस पर एक सभ्य समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। देश की संस्कृति आँसू बहायेगी। पाश्चात्य सभ्यता की अंधी नकल ठीक नहीं है।
नारी समाज की जननी है। स्वस्थ्य समाज के लिए नारी का सम्मान आवश्यक है। इसके लिए—–
स्वस्थ्य,सुन्दर,पढ़ी-लिखी हो हमार जननी, को आधार बनाया जाय। तभी समाज का कल्याण होगा। स्वस्थ समाज की स्थापना हो सकेगी।

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