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हिन्दी का हिंग्लिश स्वरूप क्या हिन्दी के वास्तविक स्वरूप को बिगाड़ेगा,

Samajik Vedna
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हिन्दी का हिंग्लिश स्वरूप क्या हिन्दी के वास्तविक स्वरूप को बिगाड़ेगा,
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विचारणीय बात है कि शुध्द हिन्दी के स्थान पर मिश्रित भाषा के रूप में इसका प्रयोग क्यों, हिन्दी भाषा ने समय की परिस्थितियों के अनुरूप अन्य भाषा की शब्दावली को आत्मसात किया है। हिन्दी ने अंग्रेजी के शब्दों को भी आत्मसात किया है। हि्दी भाषी क्षेत्र द्वारा अंग्रेजी का विरोध किया जाता है। इसके लिए हिन्दीभाषा के इतिहास पर विचार करना समीचीन होगा। भरतों द्वारा बोली जाने वाली भाषा ही हिन्दी भाषा है। अर्थात हिन्दी भाषा का इतिहास वैदिक काल से है। प्राचीन काल में पारसीक, यवन, पल्लव, कुषाण, हूण आदि बाहरी जातियाँ भारत आईं और हिन्दी भाषा अपनाया एवं भारतीय समाज में आत्मसात हो गईं।
मध्यकाल में मुस्लिम आक्रमणकारियों के प्रभाव से हिन्दी में अरबी,फारसी व उर्दू भाषा की शब्दावली बहुत अधिक संख्या में प्रवेश किया। यह बात सत्य है कि वर्तमान समय में हिन्दी में अंग्रेजी शब्दावली बहुत तेजी से प्रवेश कर रही है। इसलिए हिन्दी भाषा पर खतरा महसूस किया जा रहा है। इससे हिन्दी को खतरा नहीं है। यदि ऐसा होता तो लगभग 1500 ई0 तक हिन्दी क अस्तित्व समाप्त हो गया होता और उसका स्थान अरबी,फारसी, उर्दू ले लेती। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हिन्दी ने अपने जीवन काल में वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक बहुत स उतार-चढ़ाव देखे हैं। लेकिन वह कमजोर कभी नहीं हुई। बल्कि उसने अपनी ताकत बढ़ाई है। हिन्दी में वह पाचन-शक्ति है जो अन्य भाषा में नहीं है। हिन्दी ने अपना स्थान बहुत मजबूती के साथ पकड़े हुए है।
यदि ऐसा न होता तो अंग्रेजी माध्यम के पढ़े लोग और अंग्रेजी माध्यम से पढ़ रही उनकी संतानें अपनी रोज-मर्रा की जिन्दगी में अंग्रेजी अपना लेते। वह हिन्दी का ही प्रयोग करते हैं। अंग्रेजी एक अन्तराण्ट्रीय भाषा है । जिससे अन्य देशों के ज्ञान-विज्ञान एवं समाज से परिचित होते हैं। अतः जहाँ अतिआवश्यक हो अंग्रेजी सीखना अतर्कसंगत न होगा। यहाँ यह बात कहना उचित होगा कि मध्यकालीन भारत में अरबी,फारसी व उर्दू शब्दों का प्रयोग हिन्दी में बहुत अधिक किया जा रहा था। लेकिन समय बीता, परिस्थितियाँ बदली परिणाम यह हुआ कि इन भाषाओं के शब्दों का प्रयोग अपेक्षाकृत कम हुआ है।
उक्त तथ्य हिन्दी के पक्ष में हैं फिर भी सावधानी आवश्यक है। क्यों कि आज का युवा वर्ग पाश्चातय तौर-तरीकों का अंधानुकरण कर रहा है। बड़े दुःख की बात है कि अभिभावक वर्ग भी इस तरफ से या तो आंखे बंद किये है या वह भी कमोबेस पसन्द कर रहा है। यदि संतान अंग्रेजी के चार शब्द बोल लेता है तो अभिभावक फूले नहीं समाते। वह इस बात के लिए जोर नहीं देते कि हमारी संतान के बोलन में स्पण्टता हो,प्रभावपूर्ण शब्दों के साथ, सधे हुए भाव में,आत्मविश्वास के साथ बोले।
अंग्रेजी के चार शब्द बोलने पर अधिक महत्व दिया जाता है। वीं यदि शुद्ध हिन्दी बोलता है तो भी अपेक्षाकृत अधिक महत्व मिलता है। हमारी हिन्दी एक सरल भाषा है।

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