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जीवन ऊर्जा

Samajik Vedna
Samajik Vedna
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यह सर्व विदित है कि मनुष्य का जीवन संघर्षमय है। जीवन सुखमय कैसे हो, अर्थात दुःख के एहसास को कैसे कम किया जाय, यह चिंतन का विषय है।व्यक्ति विशेष के जीवन में अनेक कार्य/घटनायें घटित होती हैं। कुछ कार्य व्यक्ति को सुख पहुँचाने वाली होती हैं। कुछ बातें उसको आनंदित करती हैं। साथ ही जीवन की कुछ घटनायें दुःखी करती है। कुछ घटनायें उसे व्यथित कर देती हैं। मानव सुख कामना करता है। जीवन सुख-दुःख का संगम है,यह भी सर्वविदित है। इसमें जो व्यक्ति दुःख कम करने में सफल रहता है, तो कहा जा सकता है कि उसका सफल जीवन है। कभी-2 वयक्ति विशे ष के जीवन सुखी होने पर भी अतिसय दुःख का एहसास करता है। ऐसा अनेक कारण से हो सकता है। अतिवादी दृष्टिकोण ,हबस का शिकार होना,प्राप्त को भूलकर जो नहीं प्राप्त उस पर ध्यान केन्द्रित करना,समाज के अनुकूल न ढ़ाल पाना आदि कारण हैं,जिनके कारण व्यक्ति अधिक दुःख का एहसास करता है। घटना व्यक्ति की इच्छा पर,अनिच्छा पर या कर्म के परिणाम स्वरूप घटित होती हैं। जैसा कर्म वैसा फल। व्यक्ति समाज के साथ तालमेल नहीं बैठ पाता वह अनेक विवादों में फंसा रहता है। परिणाम यह होता है कि उसका जीवन दुःखमय हो जाता है। क्रोध, लोभ विवाद का कारण बनते है। ईर्ष्या-भाव आपस में दूरी पैदा करता है। मनुष्य जीवन भर पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म,उचित-अनुचित,स्वर्ग-नरक आदि में उलझा रहता है। पूरा जीवन कर्म से बंधा है। जो जैसा करेगा वैसा भरेगा। समय का हर पल हमें कुछ-न-कुछ सिखाता है।
इच्छायें अनन्त होती है। अपनी सामर्थ्य के अनुसार शैनेः-शैनेः विकास की बात ध्यान में रखकर जीवन- यापन सुखमय बनाया जा सकता है। क्रमिक विकास से जीवन में उत्साह बना रहता है। जीवन में क्रोध, लोभ,ईर्ष्या त्याग कर, हबस का शिकार होने बचकर,ईमानदारी से अपने कर्तव्य निभा कर, अपनी सामर्थ्य के आधार पर विकास निष्चित करके जीवन सुखमय बनाया जा सकता है। इन सब के लिए अन्तरात्मा की आवाज को सहयोगी बनाना होगा।

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