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धार्मिक कुरीतियाँ-आहत मानव
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धार्मिक कर्मकाण्ड अर्थात धर्म के बाह्य तत्वों में अनेक धार्मिक कुरीतियाँ शामिल हैं। धार्मिक कुरीतियों से मानव भयग्रस्त होता है। धर्म का कार्य है सर्वकल्याण की भावना जाग्रत करना। अलौकिक शक्ति या सत्ता से प्रेम करना। अपने अराध्य के प्रति श्रद्धा या प्रेम अभिव्यक्त करने के लिए अनेक कर्मकाण्डों का सहारा लिया जाता है। जिन्हें हम धर्म के बाह्य तत्व कह सकते हैं।
कुछ धार्मिक कर्मकाण्ड दिल दहला देने वाले होते हैं। अमानवीय कृत्यों को धर्म का अंग नहीं माना जा कसता। वैसे प्रत्येक धर्म में आडम्बर देखने को मिल जायेगें। लेकिन एक-दो धर्मों में कुरीतियाँ ही धर्म का प्रतीक हो गयी हैं। उदाहरण स्वरूप जवारा और मोहर्रम की बात करते हैं-
नवरात्रि की अष्टमी को जगह-जगह समूह बनाकर जवारा जुलूस निकाला जाता है। जवारा जुलूस में बृद्ध, युवा व बच्चे सभी शामिल होते हैं। जुलस का दृश्य आश्चर्यचकित करने वाला होता है। पेट, पीठ,जीभ,हाथों वैरों में सुइयाँ चुभोकर चलना,चाकू से शरीर पर वार करना,दोनों गाल पर आर-पार भाला चुभोकर चलना आदि को धार्मिक कर्मकाण्ड कैसे माना जा सकता है। यह अज्ञानता है। यदि एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से भूल से धक्का लग जाता है, तो दिखाई नहीं देता क्या और क्या-क्या क्रोध में कह जाता है। समाजिक प्राणी होने के कारण भूल के लिए माफ करना धर्म हो सकता है।
इसी प्रकार समाज का एक वर्ग मोहर्रम में जुलूस निकालता है। अपने जन्नत के सरदार की सहादत को याद करता है। अपने अराध्य को, अपने आदर्श को याद करना अच्छी बात है। करबला की लड़ाई में हजरत इमाम हुसैन व उनके 72 साथी शहीद हो गये थे। उन्हीं की याद में- बोल हुसैन का लश्कर, बोल अली का लश्कर, तकबीर अल्लाह ओ अकबर और अब्बास सकीना प्यासी है आदि नारों के साथ पुरूष और महिलायें समूह का समूह दहकते अंगारों में चल कर मातम मनाते हैं। मातम मनाते समय खुद रोते-चिल्लाते हैं, साथ में परिवार के छोटे-छोटे बच्चों को असहनीय आन्तरिक वेदना सहन करने के लिए मजबूर किया जाता है।
धर्म की मूल भावना में सभी धर्मों का मत एक है। लेकिन बाह्य तत्वों में तर्क का स्थान होना चाहिए। चिंतन व तर्कके आधार पर अज्ञानता से बाहर आकर धार्मिक कर्मकाण्डों का सम्पादन समुचित हो सकता है।
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