Samajik Vedna
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चरित्र-पतन
मादक उन्माद का उठा बवंडडर।
देखो यौनि शब्द का हाहाकार।।
भूल गये मात-पिता का रिलेशन।
केवल याद रहा लिब इन रिलेशन।।
उम्र भूल कर करती भूल नजरें।
देखो यौवन पर टिकी हैं नजरें।।
देखा था देवी रूप नारी में।
ढूंढ रहा टी आर पी उसी में।।
वाह रे नर वाह रे सोच तेरी।
सम्पदा के लिए मत गयी मारी।।
साम हुई लौटो घर मानों बात।
नहीं तो घेर लेगी घनेरी रात।।
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