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मेरा भी मन करता है,
कुमकुम बिंदिया का गान लिखूँ।
मेरा भी मन करता है,
मादक अधरों का पान लिखूँ।
पर देख के भारत मइया के,
आँचल का हर भाग तार तार।
सोच रहा विस्मित होकर,
कैसे बुलबुल की कूक लिखूँ।।
तप त्याग न्याय क्षमा करूणा हम भूल गये।
कर छल कपट धोखा धन संचय में झूल गये।
अरे मित्र , अब हम कहाँ से कहाँ आ गये।
कि धन संचय में सारे रिश्ते टूट गये।।
ढोंगी धर्म सेवक बातें बड़ी बड़ी,
साधुता की किया करता है।
उपदेश सभी को सदा तप त्याग,
छमा करूणा का दिया करता है।
अपने सुख के लिए पराये को छल कर,
धन दौलत लूट लिया करता है।
धन धाम बना कर धर्म की ओट,
फुलझड़ियों संग वास किया करता है।।
पवित्र आत्मा की स्तुति में-
घायल है अवधपुरी घायल हैं पुर जन,
अश्रु भरे नयनों से जन है निहारता।
बैठ के चित्रकूट धाम न धुनी रमाओ तुम,
भरत आज तुमको है पुकारता।
चढ़ाओ कमान में तीर धनुर्धर आज,
दुष्ट राक्षस देव को है ललकारता।
अवध से मुँह फेर कर न जाओ राम,
आज अवध राज्य तुमको है पुकारता।।
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