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बढ़ती दुशकृत्य की मानसिकता

Samajik Vedna
Samajik Vedna
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बढ़ती दुशकृत्य की मानसिकता
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व्यक्ति चाहता है कि जीवन में करूण क्रन्दन न आये। जीवन सम्मान ढंग से व्यतीत हो।
लेकिन अनेक कारणों से व्यक्ति व्यथित होता रहता है। जीवन में कष्ट अनेक कारणों से होता है। प्रायः कष्ट के लिए व्यक्ति स्वयं उत्तरदायी होता है। लेकिन कुछ दशाओं में व्यक्ति का कोई दोष नहींं होता। दुश्कृत्य की शिकार नारी की पीड़ा का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि वह जीवन और मृत्यु में कोई अन्तर नहीं समझती।अर्थात अपना जीवन ही समाप्त करने की बात सोचने लगती है। यह कष्टकारी कृत्य बढ़ती वैश्विक मानसिकता का परिणाम है। वर्तमान समय में दुशकृत्य की घटनाओं की बाढ़ सी आ गयी है। ऐसी घटनाओं के कारण देश को सम्पूर्ण विश्व में अपमानित होना पड़ रहा है।

यदि कारणों की बात की जाय तो,कम्प्यूटर व मोबाइल का दुरूपयोग,आधुनिकता के   नाम पर मर्यादाहीन जीवन जीने की होड़, पाश्चात्य सभ्यता का अंधानुकरण,स्वच्छन्दता
को स्वतन्त्रता मान लेना,व्यक्तिवाद का जन्म,नैसर्गिक न्याय को भूला कर दुष्कर्म की
घटनाओं को देखना आदि कारण हो सकते हैं।

यदि कारणों की बात की जाय तो,कम्प्यूटर व मोबाइल का दुरूपयोग,आधुनिकता के   नाम पर मर्यादाहीन जीवन जीने की होड़, पाश्चात्य सभ्यता का अंधानुकरण,स्वच्छन्दता

को स्वतन्त्रता मान लेना,व्यक्तिवाद का जन्म,नैसर्गिक न्याय को भूला कर दुष्कर्म की

घटनाओं को देखना आदि कारण हो सकते हैं।

इस विकराल समस्या का निदान संस्था विशेष,व्यक्ति विशेष व्दारा नहीं किया जा सकता।

इसका हल सम्पूर्ण समाज के व्दारा ही सम्भव है।व्यक्तिवाद के प्रभाव से प्रत्येेक व्यक्ति

दुष्कर्म करने वाले की निन्दा करने,वहिष्कार करने से बच रहा है। वह सोचता है कि हमसे क्या लेना-देना। लेकिन इस सोच को बदलना होगा।

व्यक्ति से ही समाज बनता है। व्यक्ति अपने दायित्वों से भाग रहा है। वह अपनी सन्तान के प्रति उदासीन होता जा रहा है। अपने बच्चों को स्वच्छन्दता प्रदान करके

उसे स्वतन्त्रता मान रहा है। वह ऐसा कह कर अपने दायित्वों से भागने पर परदा

डालने की कोशिश करता है। बच्चे मोबाइल का दुरूपयोग तो नहीं कर रहे,कम्प्यूटर में

क्या सीख रह हैं,यह सब देखने की आवश्यकताा

डालने की कोशिश करता है। बच्चे मोबाइल का दुरूपयोग तो नहीं कर रहे,कम्प्यूटर में
क्या सीख रह हैं,यह सब देखने की आवश्यकताा है।
बड़े खेद की बात है कि देश में हर स्तर पर जब नारी के अधिकारों की,नारी के दर्द की
बात की जाती है तो पूरूष वर्ग को ऐसी दशा में खड़ा कर दिया जाता कि वह देश की जनता का पुरूष वर्ग नहीं,पड़ोसी दुश्मन देश है। जब कि यह बात सभी जानते हैं कि
नर व नारी दोनो एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे की कल्पना नहीं की जा
सकती। प्रश्न है कि क्या मीडिया को अपनी सोच पर पुनर्चिंतन की आवश्यकता है।
मीडिया की समाज के प्रति बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। उसकी सनसनीखेज खबर का
समाज में सृजनात्क प्रभाव पड़ रहा है या स्वयं के प्रति जनता की आस्था खोता जा रहा है। मीडिया को व्यापारी नहीं,बड़े भाई की भूमिका निर्वाह करना होगा। किसी व्यक्ति पर जब आरोप लगाया जाता है तो जितनी सजगता से खबर प्रकाशित की जाती है।उतनी सजगता से आरोप झूठे होने पर भी खबर को प्रकाशित करने का दायित्व बनता है। आरोप सही साबित होने पर दिये दण्ड को बार-बार प्रकाशित होने
से डर होगा। झूठ की दशा में आरोपी की आन-बान-शान यदि मिट्टी में मिलाने से
पुरूष वर्ग का आत्मबल कमजोर होगा। देश की नारी क्या इसे सहन कर पायेगी।
जो आपने वीर पुत्र को देख कर गदगद हो जाती है।

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